पिछड़ी हुई हिंदी आलोचना बनाम हिंदी वैचारिकी

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Název: पिछड़ी हुई हिंदी आलोचना बनाम हिंदी वैचारिकी
Autoři: Ranjan, Pramod
Informace o vydavateli: Humanities Commons, 2024.
Rok vydání: 2024
Témata: Technology--Sociological aspects, Equality, Hindi literature, Creative nonfiction, Criticism
Popis: यह बात पहले भी कही जाती रही है कि हिंदी आलोचना की स्थिति दयनीय है। लेकिन इस आरोप का दायरा रचनात्मक साहित्य की अच्छी समीक्षाएं नहीं आने तक ही सीमित रहा है। प्रमोद रंजन अपने इस आलेख में बताते हैं कि किस प्रकार हिंदी आलोचना की अकर्मण्यता सांप्रदायिक तत्वों को सत्ता तक पहुंचाने में सहायक हुई। साथ ही वे प्रस्तावित करते हैं कि ‘हिंदी आलोचना’ जैसे कम प्रासंगिक अनुशासन की जगह ‘हिंदी वैचारिकी’ के नाम से अधिक समावेशी अनुशासन को विकसित और स्वीकृत किया जाना चाहिए। इससे उस साहित्येत्तर लेखन को भी प्रतिष्ठा मिल सकेगी, जो समाज और राजनीति को दिशा में देने में सक्षम है।
Druh dokumentu: Article
Jazyk: Hindi
DOI: 10.17613/yc94-vh70
DOI: 10.17613/gcwt9-r2a73
Rights: CC BY
Přístupové číslo: edsair.doi.dedup.....3ae204271f9fe00bc575ba785724a8d7
Databáze: OpenAIRE
Popis
Abstrakt:यह बात पहले भी कही जाती रही है कि हिंदी आलोचना की स्थिति दयनीय है। लेकिन इस आरोप का दायरा रचनात्मक साहित्य की अच्छी समीक्षाएं नहीं आने तक ही सीमित रहा है। प्रमोद रंजन अपने इस आलेख में बताते हैं कि किस प्रकार हिंदी आलोचना की अकर्मण्यता सांप्रदायिक तत्वों को सत्ता तक पहुंचाने में सहायक हुई। साथ ही वे प्रस्तावित करते हैं कि ‘हिंदी आलोचना’ जैसे कम प्रासंगिक अनुशासन की जगह ‘हिंदी वैचारिकी’ के नाम से अधिक समावेशी अनुशासन को विकसित और स्वीकृत किया जाना चाहिए। इससे उस साहित्येत्तर लेखन को भी प्रतिष्ठा मिल सकेगी, जो समाज और राजनीति को दिशा में देने में सक्षम है।
DOI:10.17613/yc94-vh70